बुधवार, 30 नवंबर 2011

दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा रिफ्रेशर पाठ्यक्रम का आयोजन

दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा ग्रंथालय एवं सुचना विज्ञानं पर रिफ्रेशर पाठ्यक्रम का आयोजन १९ दिसंबर २०११ से ७ जनवरी २०१२ तक किया जायेगा|

अधिक जानकारी व पाठ्यक्रम में भाग लेने हेतु फॉर्म डाउनलोड करने हेतु निम्न लिंक पर क्लिक करे|

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संसाधन सहभागिता


प्रायः देखा गया है की ग्रंथालयो में विभिन्न प्रकार की समस्याओ की करण पाठकों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है| अतः संसाधन सहभागिता (Resource sharing) द्वारा ग्रंथालय अधिक गतिशील तथा सेवा प्रदत्त हो सकते है| संसाधन सहभागिता का प्रारंभ २०० ई. पू. में एलेक्जेंडरिया (Alexandria Library) तथा पर्गमन ग्रंथालय(Pergamum Library) के बिच सहयोग से हुआ| १९७० में कुछ विश्वविद्यालयो के बीच सहभागिता के माध्यम से सेवा देना आवश्यक समझा गया| यही करण था की ‘वीमर एवं जीन’ ग्रंथालयो ने संयुक्त रूप से एक संघीय सूची(Union Catalogue) एच. सी. बैटन (H. C. Batton) के द्वारा तैयार की गयी| इस प्रकार ग्रंथालयो के बिच संसाधन सहभागिता का विकास हुआ| उदाहरण के लिया प्रसारण प्रबंध (Circulation management), डाटा संग्रहण (Data storage) इत्यादि| १९७१ में UNISIST के एक प्रयोग के अंतर्गत ग्रंथालयो के बीच सहयोग स्थापित करने के लिए सहायता प्रदान की गयी| १९२७ में अमेरिका व कनाडा के ग्रंथालयो की पत्रिकाओ की संघीय सूची (Union list) तैयार की गयी| इसके अतिरिक्त अन्य प्रयास भी हुए जिनसे संसाधन सहभागिता (Resource sharing) अधिक गतिशील बन सके|

संसाधन सहभागिता के द्वारा निम्न सेवाए प्रदान की जाती है:-
  1. अंतर-ग्रंथालय ऋण सेवा(Inter-library loan service)
  2. उपभोक्ता इ-मेल(User E-mail )
  3. अधिग्रहण एवं सूचीकरण (Acquisition and Cataloguing)
  4. कर्मचारी प्रबंध(Personnel Management-training)
  5. सुचना सेवा (Information service)
  6. अनुवाद सेवा (Translation Services)
  7.  विशिष्ट संग्रह का विकास (Development of Special collection)
  8. सहकारी संग्रहण(Co-operative Storage)

   Ref: Suchna Praudyogiki by Dr. C.K. Sharma

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

अनुक्रमणिकरण (Indexing)


अनुक्रमणिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ज्ञान को व्यवस्थित करने हेतु अनुक्रमणिका (Index) एवं सम्बंधित उपकरणों को तैयार किया जाता है| अनुक्रमणिकरण का कार्य मानव तथा कंप्यूटर दोनों की सहायता से किया जा सकता है विषय अनुक्रमणिकरण में विषय के साथ परिचित होना, विश्लेषण और अनुक्रमणिकरण भाषा के उपयोग से अवधारणाओ को प्रस्तुत करने के लिए पदों को प्रदान करने की तीनों अवस्थाएं सम्मिलित है| अनुक्रमणिकरण दो प्रकार से किया जा सकता है|

  1. पूर्व-समन्वित अनुक्रमणिकरण (Pre-coordinated indexing): जव अनुक्रमणिका तैयार करते समय ही अनुक्रमणिकार को पदों में समन्वय स्थापित करना पड़ता है तो यह पद्यति पूर्व-समन्वित अनुक्रमणिकरण कहा जाता है| उदाहरण के लिए: चेन इंडेक्सिंग (Chain Indexing), पोपसी (POPSI), प्रेसिस (PRECIS), क्लासिफाईड इंडेक्सिंग(Classified Indexing) आदि|
  2. पश्च समन्वित अनुक्रमानिकरण (Post-coordinated indexing): इस पद्यति में विषय शीर्षकों के पदों का क्रम पूर्व निर्धारित नहीं होता है, बल्कि प्रत्येक पद के लिए पृथक प्रविष्टि तैयार की जाती है| इससे उपयोक्ता को उनका क्रम यद् रखने की आवयश्कता नहीं रहती है| उदाहरण के लिए- क्विक (KWIC), क्वोक(KWOC) आदि|


दोनों प्रणालियों में मुख्य अंतर

  1. पूर्व समन्वित प्रणाली में अनुक्रमणिका तैयार करते समय ही पदों में समन्वय स्थापित किया जाता है जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में पदों का क्रम पूर्व-निर्धारित नहीं होता, बल्कि खोज के समय निर्धारित किया जाता है|
  2. पूर्व समन्वित प्रणाली में प्रलेखो को खोजने हेतु अभिगम पद अनुक्रमणिकार द्वारा तैयार किया जाता है, जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में अभिगम पद उपयोक्ता स्वयं निर्धारित कर्ता है|
  3. पूर्व समन्वित प्रणाली में लचीलापन बहुत कम होता है, जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में लचीलापन बहुत अधिक होता है|
  4. पूर्व समन्वित प्रणाली में क्रमचय (Permutation) एवं संयोजन(Combination) वर्जित होता है, जबकि पश्च-समन्वित प्रणाली में यह वर्जित नहीं है|

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

सुचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क केंद्र, अहमदाबाद (INFLIBNET)


सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क ( इनफ्लिबनेट ) केन्द्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) का एक स्वायत्त अंतर विश्वविद्यालय केन्द्र ( IUC ) है । 1991 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा शुरू किया गया यह एक प्रमुख राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसका प्रधान कार्यालय गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद के परिसर में है । IUCAA के तहत इसकी शुरूआत एक परियोजना के रूप में हुई, और 1996 में यह एक स्वतंत्र अंतर विश्वविद्यालय केन्द्र बना ।

इनफ्लिबनेट भारत में विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों के आधुनिकीकरण और सूचना के इष्टतम उपयोग के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए देशव्यापी उच्च गति डेटा नेटवर्क के द्वारा देश में सूचना केंद्रों को जोड़ने में शामिल है । इनफ्लिबनेट भारत में शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों के बीच विद्वानों के संचार को बढ़ावा देने की एक प्रमुख कड़ी है 

उद्देश्य
इनफ्लिबनेट के समझौता ज्ञापन में इसके प्राथमिक उद्देश्य इस प्रकार परिकल्पित हैं :
  • सूचना के हस्तांतरण और प्राप्ति के लिए बेहतर क्षमता बनाने के लिए संचार सुविधाओं को स्थापित करना और बढ़ावा देना ताकि संबंधित एजेंसियों के सहयोग और भागीदारी से छात्रवृत्ति, शिक्षण, अनुसंधान और शिक्षा के लिए सहायता प्रदान की जा सके ।
  • इनफ्लिबनेट : सूचना और पुस्तकालय नेटवर्क, एक कंप्यूटर संचार नेटवर्क स्थापित करना ताकि विश्वविद्यालयों,विश्वविद्यालयवतों, कॉलेजों, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सूचना केंद्रों, राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और सूचना केंद्रों आदि के पुस्तकालयों को जोड़ा जा सके व दोहराव से बचा जा सके ।
i. देश के पुस्तकालयों और सूचना केंद्रों में समान मानक के अनुसार कम्प्यूटरीकरण ऑपरेशन और सेवाओं को बढ़ावा देना ;

ii. संसाधनों और सुविधाओं के इष्टतम उपयोग के लिए सूचना के आदान, विनिमय और साझेदारी की दिशा में सभी पुस्तकालयों में तकनीक, विधि, प्रक्रिया, कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, सेवाओं में एक समान मानक और दिशा निर्देश तैयार करने के लिए और उन्हें वास्तविक रूप में बढ़ावा देना :

iii. सूचना और सेवा प्रबंध में क्षमता में सुधार करने के लिए देश में विभिन्न पुस्तकालयों और सूचना केन्द्रों को परस्पर जोड़ने के लिए राष्ट्रीय नेटवर्क विकसित करना ;

iv. भारत के विभिन्न पुस्तकालयों में धारावाहिकों, शोध निबंध / शोध प्रबंध, किताबें, मोनोग्राफों और गैर पुस्तक सामग्री ( पांडुलिपियों, श्रृव्य-दृश्य, कंप्यूटर डेटा, मल्टीमीडिया, आदि ) ऑन लाइन संघ सूची बनाने के लिए पुस्तकालयों के दस्तावेज़ संग्रह तक विश्वसनीय पहुँच प्रदान करना :

v. विश्वसनीय पहुँच के लिए प्रशंसा पत्र के साथ NISSAT के क्षेत्रीय सूचना केन्द्रों, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सूचना केन्द्रों, सिटी नेटवर्क और ऐसे अन्य लोगों के द्वारा देश में निर्मित डेटाबेस के माध्यम से स्थापित स्रोत, सार, आदि के साथ ग्रंथ सूची जानकारी प्रदान करवाना और क्रमश: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क और सूचना केंद्रों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय डेटाबेस ऑन लाइन पहुँचने के लिए द्वार स्थापित करना;

vi. उच्च घनत्व भंडारण मीडिया का उपयोग करते हुए डिजिटल छवियों के रूप में विभिन्न भारतीय भाषाओं में पांडुलिपियों और सूचना दस्तावेज़ों के रूप में उपलब्ध बहुमूल्य जानकारी के अभिलेखन के लिए नए तरीकों और तकनीकों को विकसित करना;

vii. साझा सूचीपत्रक, अन्तर पुस्तकालय उधार सेवा, सूचीपत्र उत्पादन, और संग्रह विकास के माध्यम से सूचना संसाधनों के उपयोग को इष्टतम करना जिससे यथा संभव अर्जन के दोहराव से बच सकें ;

viii. पूरे देश में कहीं भी कितनी भी दूरी पर मौजूद उपयोगकर्ताओं को सक्षम करने के लिए धारावाहिकों, शोध निबंध / शोध प्रबंध, किताबें, प्रबंधकीय और गैर-पुस्तक सामग्री के बारे में जानकारी प्रदान करके उपलब्ध स्रोतों के माध्यम से और इसे इनफ्लिबनेट और दस्तावेजों की संघ सूची की सुविधा प्राप्त करके;

ix. ऑन लाइन सूचना सेवा उपलब्ध कराने के लिए परियोजनाओं, संस्थानों, विशेषज्ञों, आदि के लिए डेटाबेस बनाना;

x. देश में पुस्तकालयों, प्रलेखन और सूचना केंद्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना ताकि मजबूत संसाधन केन्द्रों द्वारा कमजोर संसाधन केन्द्रों की मदद करने के लिए संसाधनों का उपयोग किया जा सके, और

xi. इनफ्लिबनेट को स्थापित करने के लिए, प्रबंधन और उसे जारी रखने के लिए कम्प्यूटरीकृत पुस्तकालय संचालन और नेटवर्क के क्षेत्र में मानव संसाधन का प्रशिक्षण और विकास ।
  • इलेक्ट्रॉनिक मेल, संचिका अंतरण, कम्प्यूटर / ऑडियो / वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, आदि के माध्यम से वैज्ञानिक, इंजीनियर, सामाजिक वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, संकायों, शोधकर्ताओं और छात्रों के बीच अकादमिक संचार की सुविधा
  • संचार, कंप्यूटर नेटवर्किंग, सूचना प्रबंध और आँकड़ा प्रबंधन के क्षेत्र में प्रणाली के डिजाइन और अध्ययन करना ;
  • संचार नेटवर्क और व्यवस्थित रखरखाव के लिए उपयुक्त नियंत्रण और निगरानी प्रणाली स्थापित करना;
  • इस केंद्र के उद्देश्यों से प्रासंगिक क्षेत्र में भारत और विदेशों में संस्थानों, पुस्तकालयों, सूचना केंद्रों और अन्य संगठनों के साथ सहयोग करना;
  • इस केंद्र के लक्ष्यों को साकार बनाने अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना और आवश्यक सुविधाओं को विकसित और तकनीकी पदों सृजन करना ;
  • सूचना और परामर्शी सेवाएं प्रदान करके आय अर्जित करना, और
  • उपरोक्त सभी या किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह सब करना जो आवश्यक हो, प्रासंगिक या अनुकूल हो ।
सुचना स्त्रोत: http://www.inflibnet.ac.in/hindi/about/

शनिवार, 19 नवंबर 2011

गूगल की मदद से जानिए अपना इम्पेक्ट फेक्टर एवं एच-इंडेक्स


गूगल ने कुछ समय पहले सीमित लेखकों के लिए उनके प्रशस्ति पत्र मेट्रिक्स एवं उनको नियमित रूप से अपडेट करने के लिए गूगल स्कॉलर उद्धरण (Google Scholar Citation) के नाम से एक सीमित सेवा शुरू की थी| अब गूगल की यह सेवा सभी के लिए बिना किसी मूल्य के उपलब्ध है| अब आप आसानी से गूगल के उद्धरण सेवा का उपयोग करके आपके द्वारा लिखे गए लेखो के उपयोग के बारे में जान सकते है|

गूगल स्कॉलर उद्धरण कैसे कार्य करता है|
गूगल स्कॉलर उद्धरण की सहायता से आप इन्टरनेट पर अपने द्वारा लिखे गए लेखो को आसानी से खोज सकते है एवं संखिय्कीय गणना के आधार पर बनाये गए उनके समूह को चुन सकते है, तत्पश्चात गूगल स्कॉलर उन लेखो के लिए प्रशंसा पत्रों को एकत्रित करता है एवं समय समय पर उनके ग्राफ एवं प्रशंसा पत्र मिति की, H-सूचकांक (H index) की, i-10 सूचकांक (i-10 index) जो न्यूनतम १० प्रशंसा पत्रों (Citations) वाले लेखो की गणना करता है, एवं आपके द्वारा लिखे गए सभी लेखो के प्रशंसा पत्रों की संख्या की गणना कर्ता है| प्रत्येक मिति की गणना पिछले पांच वर्षों में प्रकाशित हुए लेखो की प्रशंसा पत्रों एवं कुल प्रशंसा पत्रों के आधार पर होती है|

जैसे जैसे गूगल स्कॉलर को अन्य लेखो में आपके लेखो के प्रशंसा पत्र (Citations) प्राप्त होंगे वैसे वैसे आपका प्रशंसा पत्र मिति स्व-चालित रूप से अद्यतन होकर आपको प्राप्त हो जायेगी| गूगल स्कॉलर उद्धरण पर आप अपने लेखो के लिए स्वचालित अद्यतन (update) स्थापित कर सकते है अथवा आप अद्यतन किये गए लेखो की समीक्षा कर किसी लेख को जोड़ने या हटाने के लिए सुझाव भी दे सकते है, साथ ही साथ आप मैन्युअली भी अपने लेखो की सूची में किसी लेख को जोड़ सकते है या उस सूची में सुधार कर सकते है जैसे की खोये लेखो को जोड़ना, ग्रन्थसूचियों की त्रुटियों को सुधारना, एवं डुप्लिकेट प्रविष्टियो का विलय करके अपनी प्रोफाइल को अद्यतन करना|

यही नहीं, आप अपने सहयोगियो, सह-लेखकों एवं अन्य शोधकर्ताओ की प्रोफाइल भी उनके नाम, उनकी संस्था अथवा उनकी रूचि के आधार पर खोज सकते है| यदि आप अपने सह-लेखकों को अपनी प्रोफाइल से जोड़ना चाहते है तो आप उनके लिंक को अपनी प्रोफाइल से जोड़ सकते है और यदि उनकी प्रोफाइल नहीं है तो आप उन्हें आमंत्रण भेज कर प्रोफाइल बनवा सकते है|

आप अपनी प्रोफाइल को अपनी इच्छानुसार सार्वजानिक अथवा प्राइवेट बना सकते है| यदि आप अपनी प्रोफाइल को सार्वजानिक करना चुनते है तो यह गूगल विद्वान खोज के परिणामों में आपके नाम से खोजे जाने पर प्रकट हो सकता है| यह सेवा आपके सहयोगियो के लिए आपके द्वारा किये जा रहे कार्यों को जानना आसान बना देगी|

यह उम्मीद है की गूगल विद्वान उद्धरण दुनियाभर के विद्वानों के लिए उनके एवं उनको सहयोगियो के कार्यों के प्रभाव को देख सकेंगे|

इस लिंक पर क्लीक करके आप गूगल विद्वान उद्दरण(Google Scholar Citations) पर अपनी प्रोफाइल बना सकते है|

मंगलवार, 15 नवंबर 2011

आरएसएस (रियली सिंपल सिंडीकेशन)



आरएसएस  अंग्रेजी भाषा के (Really Simple Syndication) का संक्षिप्त रूप है| यह दरअसल वेब पन्नों की फीड के प्रचलित प्रारुपों का एक समूह (फेमिली) है, अर्थात आर एस एस के नाम से कई प्रकार के वेब-फीड प्रचलन में हैं। यह उन जाल पृष्ठों के लिये काम का है जो जल्दी-जल्दी बदलते रहते हैं, मसलन ब्लॉग, समाचार, आदि) । इसके उपयोग से ऐसे वेब पन्नों में होने वाले परिवर्तनों पर स्वचलित तरीके से नज़र रखी जा सकती है।


आरएसएस के द्वारा उपयोगकर्ता के ब्राउजर या डेस्कटॉप को प्रभावी तरीके से सामग्री प्रदान करने का एक तरीका है। आरएसएस फीड्स का प्रयोग करके, उपयोगकर्ता किसी भी वेब पेज पर प्रकाशित होने वाले समाचारों के बारे में अद्यतन जानकारी रख सकते हैं। आज के युग में जहा हजारो वेब साईट उपलब्ध होती है तब उपयोगकर्ता के लिए अपनी इच्छित सभी वेब साइटों पर प्रकाशित होने वाली सामग्री की जानकारी रखना अत्यंत मुश्किल होती है| आरएसएस हमें बहुत ही आसानी से सभी वेब पन्नों पर प्रकाशित होने वाली सामग्री के जानकारी हमारे वेब पन्ने पर ही उपलब्ध करवा देता है|

आर एस एस फीड को पढने व प्राप्त करने हेतु जो साफ्टवेयर प्रयोग में लाये जाते हैं उन्हें एग्रीगेटर कहा जाता है। एग्रीगेटर को आर एस एस रीडर, न्यूज़ रीडर,फीड रीडर जैसे अन्य अनेक नामों से भी जाना जाता है। एग्रीगेटर
निम्न प्रकार से फीड पढ़ते हैं,

·         इन्टरनेट के द्वारा: यदि आपके पास याहू अथवा गूगल की ई मेल ID है तो आप My yahoo अथवा व्यक्तिगत गूगल में भी फीड जोड़ सकते हैं । कई वेब ब्राउसर जैसे कि फायर फॉक्स या ओपेरा वगैरह में न्यूज रीडर प्रोग्राम रहता है और इनमें भी फीड डाउनलोड की जा सकती है।

·         अपने कंप्यूटर पर न्यूस़ रीडर प्रोग्राम को इन्सटॉल करके: इस तरह के प्रोग्रामों में Newsgator, feedreader (केवल विंडोस़ में) (http://www.feedreader.com/) Akregator (केवल लिनक्स में) प्रमुख हैं।

·         ई-मेल भेजने एवं प्राप्त करने के सॉफ्टवेयर के साथ: थन्डर-बर्ड ई-मेल भेजने एवं प्राप्त करने का बहुत अच्छा सॉफ्टवेयर है यह ओपेन सोर्स है और मुफ्त है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह सब प्रकार के Operating system पर चलता है । इसमें भी New & Blog में जाकर आप किसी भी वेबसाइट की फीड डाउनलोड कर सकते हैं। यह उसी प्रकार से किया जाता है जैसे ई-मेल सेटअप की जाती हैं।

सोमवार, 14 नवंबर 2011

बहुसंकेतन (multiplexing)


बहुसंकेतन का अर्थ किसी भी क्रिया की क्षमता को आने गुना करने वाली विधि से होता है| कंप्यूटर के सन्दर्भ में संकेतन का अर्थ सम्प्रेषण को अनेक कम्प्यूटरो या अनेक अन्य इकाइयों से जोड़ने की एक प्रक्रिया से होता है, जिसमे की सम्प्रेषण एक ही चैनल का उपयोग करने में सहभागी हो सके| बहुसंकेतन(multiplexing) बहुसंकेतक(multiplexer) के द्वारा उत्पन्न किया जाता है| बहुसंकेतन की तीन प्रमुख विधिया है|

१.      आवृति विभाजन बहुसंकेतन (FDM- Frequency Division Multiplexing):  आवृति विभाजन बहुसंकेतन में एक विस्तृत बैंड माध्यम में अनेक चैनलों को स्थापित करने हेतु अलग अलग आवृतियो का प्रयोग किया जाता है| आवृति विभाजन बहुसंकेतन तार पर विभिन्न दिशाओ में भेजी जाने वाली सुचना के समूह को अलग अलग करने हेतु ब्राड बेंड (Broad bend) का लेन (LAN) में प्रयोग किया जाता है तथा कम्प्यूटरो में समर्पित कनेक्शन जैसी विशिष्ट सेवा प्रदान करने हेतु उपयोग में लाया जाता है|



२.    समय विभाजन बहुसंकेतन (TDM- Time Division Multiplexing): समय विभाजन बहुसंकेतन किसी अकेले चैनल को संक्षिप्त समय वाले खाचो (Slots) में बाट देती है, जिसमे बिट, बीटो के ब्लाक, बाइट्स या प्रत्येक समय अंतराल में फ्रेमो को स्थापित किया जा सकता है जो सीमा से बाहर नहीं जा सकते है| समय विभाजन बहुसंकेतन तकनीक बेसबैंड प्रणालियों पर उपयोग में लायी जाती है|



३.    सांख्यिकीय समय विभाजन बहुसंकेतक (STDM- Statistical Time Division Multiplexing): यदि समय के खाँचो में से कुछ खाँचे अनुपयोगी रह जाते है तो एक ही समय में घटित होने वाली परंपरागत समय विभाजन बहुसंकेतन प्रणालिया बैंडविड्थ को बेकार कर देती है| सांख्यिकीय समय विभाजन बहुसंकेतन पहले आओ पहले पाओ सिद्धांत के आधार पर सक्रिय युक्तियों को समय के खाँचो में लागु कर इन समस्याओ को दूर कर देता है|

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

जानिये क्या है एपीआई (एकेडेमिक परफोर्मेंस इंडीकेटर) का गणित


अब किसी भी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर या प्रोफेसर बनना टेढ़ी खीर हो गया है। प्रोफेसरी की फीती लगाने के लिये अब आपको आलराउंडर तो होना ही पड़ेगा बल्कि कई तरह के पापड़ भी बेलने पड़ेंगे। क्लास रुम में ही नहीं बाहर भी पूरा काम करना होगा। काम भी मार्के का करना होगा यानि पेपर छपवाना होगा तो किसी स्तरीय जर्नल या किसी बड़े हाउस द्वारा निकाले जाने वाली पत्रिका से ही छपा हो। कम से कम तीन-चार किताबें लिखनी होंगी और लगातार अन्य कोर्सो व कार्यक्रमों में सक्रिय रहना पड़ेगा। यूजीसी की नई गाइडलाइन्स के मुताबिक अब किसी भी संस्थान में सीधे रीडर/एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर बनने के लिये एकेडेमिक परफोर्मेंस इंडीकेटर (एपीआई) के तहत न्यूनतम क्रमश: 300 और 400 प्वाइंट अर्जित करने होंगे।

किसी भी असिस्टेंट प्रोफेसर/लायब्रेरियन के लिये अब केवल पढऩा-पढ़ाना ही काफी नहीं होगा उसे तरक्की पाने के लिये शोध-पत्र लिखने होंगे, पुस्तकें लिखनी होंगी और वे भी स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में छपवानी होगी। कम से कम 300 या 400 अंक पाने के लिये अब शिक्षकों को किसी न किसी जर्नल के सम्पादकीय बोर्ड में होने के भी अंक मिलेंगे। यदि आप किसी अंतरराष्ट्रीय जर्नल, जिसे आईएसबीए/आईएसएसएन नंबर मिला हो, के बोर्ड में हैं, तो आपको 15 अंक मिलेंगे अगर जर्नल बिना आईएसबीएन के हैं, तो उसके 10 ही अंक मिलेंगे और आईएसबीएन नंबर के साथ बिना रेफर्ड जर्नल के सम्पादकीय मंडल में हैं तो इसके महज पांच ही अंक मिलेंगे।

आप किस पत्र-पत्रिका में रिव्यूर/रेफरी हैं यदि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर की रेफर्ड जर्नल है तो इसके पूरे 10 अंक मिलेंगे अगर पत्रिका रेफर्ड तो हैं मगर आईएसबीएन नंबर वाली नही है ते इसके कुल पांच ही अंक मिलेंगे और अगर जर्नल रेफर्ड नहीं है मगर उसे आईएसबीएन नंबर मिला हुआ है तो इसकी एवज में तीन अंक मिलेंगे।

इसी तरह अगर आईएसबीएन नंबर वाली किसी रेफर्ड जर्नल में आपका शोध-पत्र छपा है तो उसके 20 अंक मिलेंगे और बिना आईएसबीएन नंबर वाले जर्नल में पेपर छपने पर 15 नंबर मिलेंगे। यदि शोध-पत्र आईएसबीएन वाली किसी नान-रेफर्ड जर्नल में छपा है तो उसके 10 अंक और अगर किसी कान्फ्रेंस प्रोसीडिंग में कोई पेपर फुल पेपर के तौर पर पढ़ा गया है तो उसके भी 10 अंक दिये जायेंगे। नये नियमों के तहत सबसे ज्यादा अंक किसी भी पुस्तक के छपने पर दिये जाने का प्रावधान रखा गया है। अगर आपने कोई रेफरेंस या टेक्स्ट बुक लिखी है तो आपको इसके पूरे 50 अंक दिये जायेंगे मगर शर्त यह है कि यह किसी अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन से छपी हो। इसी प्रकार अगर किसी राष्ट्रीय स्तर के प्रकाशक ने आईएसबीएन नंबर के साथ विषय की किताबें छापी हो तो उसके लेखक को इसके 25 अंक मिलेंगे। अगर ऐसी पुस्तक किसी लोकल प्रकाशक से छपवाई गयी है तो उसके मात्र 15 अंक ही मिलेंगे, हां यह आईएसबीएन नंबर के साथ छपी हो। इसमें भी पेंच है कि किताब के एक से ज्यादा लेखक होंगे तो उनमें ये अंक बराबर बांटे जायेंगे।

आपके सम्पादन में कितनी किताबें छपी हैं, आपने कितनी पुस्तकों में कितने लेख या अध्याय लिखे हैं इसके भी नंबर दिये जायेंगे। नये नियमों के तहत किसी भी टेक्स्ट बुक या रेफरेंस बुक के सम्पादन के लिये अगर वह अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रकाशक से आईएसबीएन नंबर सहित छपवाई गयी हैं, तो उसके 15 और यदि राष्ट्रीय स्तर के प्रकाशन से छपी है तो 10 और किसी लोकल प्रकाशक ने आईएसबीएन नंबर के साथ छापी है तो उसके पांच अंक मिलेंगे।

इसी तरह रिसर्च प्रोजेक्ट साइंस के लिये 30 लाख और सोशल साइंस,कला एवं मानविकी के लिये पांच लाख के प्रोजेक्ट के लिये 20 नंबर और इससे कम पांच व तीन लाख के प्रोजेक्ट होने पर के 15 और इससे कम का होने पर 10 अंक मिलेंगे। कन्सल्टी प्रोजेक्ट के 10 अंक और प्रोजेक्ट पूरा होने पर 20 अंंक प्रोजेक्ट की कोई आउटकम आने पर 30 अंक मिलेंगे।

पढ़ाई के साथ आपने शोध के क्षेत्र में कितने छात्रों का मार्गदर्शन किया है इसके भी अंक मिलेंगे। पीएचडी डिग्री अवार्ड होने पर 10 अंक, थीसिस जमा होने तक सात अंक जबकि एमफिल/एमए के लघु शोध प्रबंध के लिये तीन-तीन अंक मिलेंगे। इसी तरह ट्रेङ्क्षगग कोर्स, कान्फ्रेंस/सेमिनार/वर्कशाप के लिये भी नंबर दिये जाने का प्रावधान रखा गया है। यदि आप किसी सेमिनार/ रिफ्रेशर कोर्स/ रिसर्च मैथ्डोलाजी/ वर्कशाप/ प्रशिक्षण/ टीचिंग-लर्निंग इवेल्यूएशन टेक्नोलाजी, साफ्ट स्किल डेवलपमेंट/ फैकल्टी प्रोग्राम के आर्गेनाइजर/ अध्यक्ष/ चेयरमैन/ कनवीनर/ कोआर्डीनेटर/ डायरेक्टर/ सचिव हैं, जिसकी अवधि दो हफ्ते से कम न हो तो आपको 30 अंक मिलेंगे और अगर एक हफ्ते की अवधि के हैं तो 15 अंक मिलेंगे यदि इससे कम अवधि का कार्यक्रम है, तो इसके 10 ही अंक मिलेंगे। हां,इसमें भी एक शर्त है -अगर एक से ज्यादा आयोजक हैं तो अंक बंट जायेंगे और कोई भी इस मद में अधिकतम 90 अंक ही एकत्र कर सकता है। उपरोक्त कार्यक्रमों में से किसी में भी अगर कोई भागीदारी करता है तो उसे अवधि के हिसाब से 20 और 10 एवं पांच अंक मिलेंगे। अगर आप इंटरनेशनल स्तर के इन्ही में से किसी आयोजन में आमंत्रित वक्ता हैं, तो 15 और राष्ट्रीय स्तर के आयोजन में हैं तो 10 रीजनल या राज्य स्तरीय में हैं तो साढ़े सात अंक ही मिलेंगे।

इसके अतिरिक्त यदि आप अंरराष्ट्रीय स्तर के किसी सेमिनार में रिसोर्स पर्सन या आमंत्रित वक्ता हैं, तो 15 अंक दिये जायेंगे। इसी के साथ अगर आप किसी प्रोफेशनल बाडी के एडवाइजर हैं, अथवा उसके पदाधिकारी हैं, तो इसके अंतर्राष्ट्रीय स्तर का होने पर 15 अंक राष्ट्रीय होने पर 10 और क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय होने पर मात्र साढ़े सात अंक मिलेंगे

(डा. जोगिंद्र सिंह,दैनिक ट्रिब्यून,चंडीगढ़,22.9.2010)।

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

इन्टरनेट सर्च इंजिन एवं उसकी कार्य पद्यति


 वेब सर्च इंजन एक ऐसा सर्च इंजन (search engineहै जिसे विश्वव्यापी वेब पर सुचना की खोज के लिए बनाया गया है. सूचना में वेब पेजछवियाँ और अन्य प्रकार की संचिकाएँ हो सकती हैं.कुछ सर्च इंजन हमारे पास उपलब्ध डाटा जैसे न्यूज़बुक्स,डेटाबेसया खुली निर्देशिका (open directoriesमें हो सकतें हैं. वेब निर्देशिका(Web directoriesजिसे मनुष्य संपादक के द्वारा बनाये रखा गया है इसके विपरीत सर्च इंजन अल्गोरिथम या अल्गोरिथम का मिश्रण और मानव आगत का परिचालन करती है.

एक सर्च इंजननिम्नलिखित आदेश से संचालित होता है
1.   वेब crawling (Web crawling)
2.   अनुक्रमण (Indexing)
3.   खोज रहा है (Searching)

वेब सर्च इंजन कई वेब पन्नों में संग्रहित सूचनाओं के आधार पर कार्य करतें हैं जो अपने डब्लू डब्लू डब्लू से पुनः प्राप्त करतें हैं.ये पन्नें वेब क्रोलर (Web crawler) और के द्वारा प्राप्त हैं (कभी कभी मकड़ी के नाम से जाना जाता है) ; एक स्वचालित वेब ब्राउज़र जो हर कड़ी को देखता है.robots.txt (robots.txt) के प्रयोग से निवारण किया जा सकता है प्रत्येक पन्नों के सामग्री का विश्लेषण से निर्धारित किया जा सकता है कैसे इसे अनुक्रमित (indexed) किया जाए (उदहारणस्वरुपशीर्षकोंविषयवाचकया विशेष क्षेत्र जिसे मेटा टैग (meta tags) कहते हैंसे शब्द जुडा होता है)बाद के पूछ ताछ के लिए वेब पन्नों के बारें में आधार सामग्री आंकडासंचय सूचकांक में संगृहीत है कुछ सर्च मशीने जैसे गूगल स्रोत पन्नों के कुछ अंश या पुरा भाग ( केच (cache) के रूप में) और साथ ही साथ वेब पन्नों के बारे में जानकारी स्टोर कर लेता है जबकि अन्य जैसे अल्ताविस्ता (AltaVista) प्रत्येक पन्नों के प्रत्येक शब्द जो भी पातें हैं उसे संगृहीत कर लेते हैं.यह संचित पन्ना वास्तविक खोज पाठ को हमेशा पकड़े हुए है जबसे इसको वास्तविक रूप में सूचीबद्ध किया गया है इसलिए जब वर्तमान पन्ने का अंतर्वस्तु को अद्यतन करने के बाद और खोज की स्थिति ज्यादा देर तक न होने के बाद यह अत्यन्त उपयोगी हो सकता है लिंक रूट (linkrot) के इस समस्या को हलके रूप में समझना चाहिए और गूगल के संचालन में इसका इस्तमाल (usability) बढ़ा क्योंकि उसने खोज शब्दों को लौटे हुए वेब पृष्ठों के द्वारा उपयोगकर्ताओं के उम्मीदों (user expectations) को पुरा किया यह विस्मय के कम से कम सिधांत (principle of least astonishment) को संतुष्ट करती है आमतौर पर उपयोगकर्ता लौटे हुए पन्नों पर खोज के परिणामों की उम्मीद करता है प्रासंगिक खोज के बढने से संचित पन्ने बहुत उपयोगी हो जाते हैंयहाँ तक की वें तथ्यों से बाहर के डाटा हो सकते हैं जो कही भी उपलब्ध नहीं है.

जब कोई उपयोगकर्ता सर्च इंजन में पूछताछ (query) के लिए प्रवेश करता है ( आमतौर पर मुख्य शब्दों (key word) का प्रयोग करके) सर्च मशीन इसके विषय सूचि(index) की परीक्षा करता है और इसके मानदंडों के अनुसार उपयुक्त वेब पन्नों को सूचीबद्ध करता हैसामान्यतः एक छोटी सारांश के साथ जो प्रलेख के शीर्षकों और पाठ के भागों पर आधारित होती है अधिकतर सर्च इंजन बुलियन संचालक (boolean operators) AND, OR and NOT को खोज जिज्ञाशा (search query) शांत करने के लिए समर्थन करतें हैं . कुछ सर्च इंजन उन्नत किस्म के संचालक उपलब्ध कराते हैं जिसे प्रोक्सिमिटी सर्च (proximity search) कहा जाता है जो उपभोक्ता को किवर्ड्स कि दूरियां को परिभाषित करने में सहायता करता है .

सर्च इंजनों के इस्तेमाल को 22 साल हो गए हैं। पहला इंटरनेट सर्च इंजन आर्ची था जिसे 1990 में एलन एमटेज नामक छात्र ने विकसित किया था। आर्ची के आगमन के समय विश्व व्यापी वेब का नामो-निशान भी नहीं था। चूंकि उस समय वेब पेज जैसी कोई चीज नहीं थी, इसलिए आर्ची एफटीपी सर्वरों में मौजूद सामग्री को इन्डेक्स कर उसकी सूची उपलब्ध कराता था।

आर्ची’ इसी नाम वाली प्रसिद्ध कॉमिक स्ट्रिप से कोई संबंध नहीं है। यह नाम अंग्रेजी के ‘आर्काइव’ शब्द से लिया गया थाजिसका अर्थ है क्रमानुसार सहेजी हुई सूचनाएं। आर्ची के बाद मार्क मैककैहिल का ‘गोफर’ (1991), ‘वेरोनिका’ और ‘जगहेड’ आए। 1997 में आया ‘गूगल’ जो सबसे सफल और सबसे विशाल सर्च इंजन माना जाता है। ‘याहू’ ‘बिंग’ (पिछला नाम एमएसएन सर्च)एक्साइटलाइकोसअल्टा विस्टागोइंकटोमी आदि सर्च इंजन भी बहुत प्रसिद्ध हैं।